यूं तो भारत ने पूजा हर देवी को दुर्गा, लक्ष्मी या काली के रूप में फिर मुझे क्यों न अपनाया उस रंग-रूप में। न कौशल न हुनर कुछ काम न आया बस रंग-रूप ने ही मुझे हर मोड़ पर है आज़माया।
काला रंग ....वरदान या अभिशाप?
बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माने जाने वाली मां काली को हमारे देश में बड़ी श्रृद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है। खासतौर पर जब मौका हो नवरात्रों का, तो पूरा देश मां की धुन में लीन होता है। लेकिन इसे समाज की विडम्बना कहें या ना समझी कि जहां एक तरफ देवी की पूजा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ निरंतर उसका तिरस्कार किया जा रहा है।
ये कही-सुनी बातें नहीं बल्कि मेरे कई वर्षों के अनुभवों का निचोड़ है, जो आज मैं आप सबके बीच व्यक्त कर रही हूं। सदियों से काला रंग समाज में अभिशाप की तरह पनप रहा है, जो शारीरिक न सही लेकिन मानसिक पीड़ा बनकर हर पल दिल को आहत पहुंचाता है। कुदरत की बनाई गई खूबसूरती को लोगों ने अपने पैमाने में नाप कर बांट दिया है और गोरे रंग को उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है जहां सीरत या गुणों का कोई महत्व नहीं।
सालों पहले दक्षिण अफ्रीका में फैली रेसिज़्म की कुप्रथा से हम सभी बहुत अच्छे से वाकिफ हैं, जिसके खिलाफ हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने वहां रहकर आवाज भी उठाई। गोरे और काले का ये भेदभाव अंग्रेजों ने अपने शासन काल में हमारे देश में भी किया और लोगों को दो भागों में बांटकर रख दिया। वक्त के साथ देश तो आजाद हो गया लेकिन अफसोस केवल बस इस बात का रहा कि "अंग्रेज चले गए पर ये बैर छोड़ गए" और पुरूष प्रधान हमारे इस समाज ने काले रंग के इस श्राप से केवल लड़कियों को बांधकर रख दिया और उनके ज़हन पर काला घाव छोड़ दिया।
कहते हैं समय के साथ हर ज़ख्म भर जाता है....किन ये काला ज़ख्म तो आज भी दिल के भीतर नासूर बनने के लिए अलग-अलग तरीके ढूंढ रहा है। उदाहरण के तौर पर अपने घर में रविवार के अखबार का खास अंक उठा कर देख लें, जहां मोटे शब्दों में लिखा होता है कि "मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत्त लड़के को गोरी सुंदर लड़की चाहिए या चाहिए एक गोरी वधू".....ऐसे नजाने सैकड़ों विज्ञापन से वैवाहिक अंक भरा रहता है, जिनसे ये साफ ज़ाहिर होता है कि अपने बेटे के लिए हम जिस लक्ष्मी का चुनाव कर रहे हैं, उसमें घर चलाने के गुण भले ही न हो लेकिन होनी वो...."गोरी ही चाहिए"।
इतना ही नहीं काले रंग को और नीचा दिखाने के लिए जब ये तरीका पूरा न पड़ा तब विज्ञापन कंपनियों ने एक और प्रचार सामने लाकर रख दिया, जिसमें अचानक से आपके टी.वी स्क्रीन पर एक खूबसूरत सी लड़की अपना दुखड़ा सुना रही होती है कि "पहले मेरा रंग काला था, जिस कारण मुझे कोई पसंद न करता और शादी के लिए न कर देता। मुझे लोगों के बीच उठने-बैठने में शर्म आती, मेरे रंग के कारण लोग मेरा मजाक उड़ाते, मुझे काम नहीं देते, रिश्ते आए पर मेरे रंग को देखकर दरवाजे पर से ही चले गए बगैरह...बगैरह...पर जब से मैने ये अपनाया, मेरी जिंदगी को एक नया आयाम मिल गया, अब मेरे घर के बाहर रिश्तों की लाइन लगी रहती है...थैंक्स टू......"
इन विज्ञापनों ने लोगों के मायने में जो खूबसूरती की परिभाषा थी, उसे सौ फीसदी सिद्ध कर दिया और ये बता दिया कि यदि आप गोरी है तभी आप खूबसूरत हैं, तभी आपको नौकरी मिल सकती है और तभी आपकी शादी भी हो सकती है। और तो और जो पति पसंद करके शादी करता है उसको कुछ दिनों के बाद पता लगता है की मेरी पत्नी का रंग सांवला है जिसके लिए समझाया जाता है की ये तो स्वीकार करो की तुम काली हो , आज मैं डॉ. शिल्पी चौहान समाज से पूछना चाहती हूँ की यदि कोई काला है या सांवला है तो उसको स्वम स्वीकारना है या समाज को ?
क्या ये उन लोगों की व्यक्तिगत जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं जो कुदरत द्धारा काली माटी से बनाएं गए हैं और इस भेदभाव के कारण गोरे रंग को पाने की जद्दोज़हद में लगे हुए हैं? क्या सचमुच गोरा रंग ही असली सुंदरता है?....मेरे दोस्तों, खूबसूरती रंग में नहीं बल्कि देखने वालों की आंखों में छुपी होती है, तभी तो किसी ने कहा है कि "beauty lies in the eye of beholder". काला रंग यदि खूबसूरती पर दाग होता तो विश्व सुंदरी का ताज कभी सांवली लड़कियों के सिर पर नहीं सजाया जाता। ये ताज रंग से नहीं बल्कि उनके कॉन्फिडेंस लेवल को देखकर पहनाया जाता है और ऐसा कॉन्फिडेंस केवल तभी आ सकता है जब आप इंटरनली व एक्सटर्नली दोनों तरीके से खूबसूरत दिखें। इंटरनल खूबसूरती आपके विचारों व गुणों में छुपी होती है। इस खूबसूरती को बनाएं रखने के लिए अपने स्वभाव को हमेशा सरल और सुलझा बनाएं रखना चाहिए क्योंकि ये आपके व्यक्तित्व का पहला परिचायक होता है, जो आपको ओर दूसरों को आकर्षित करता है। इसके अलावा आंतरिक सुंदरता के लिए अपनी सोच को सदा सकारात्मक रखना चाहिए और नकारात्मक भावों को मन में नहीं आने देना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ एक्सटर्नल खूबसूरती के लिए जरूरी है अच्छी, साफ व चमकदार त्वचा क्योंकि त्वचा आपके व्यक्तित्व का आईना होती है... और जहां तक बात रही कटीले नैन-नक्श की तो उनको तो मेकअप के जरिए भी संवारा जा सकता है।
अंत में अपनी बातों को विराम देते हुए मैं यही कहूंगी कि जब भगवान के साथ इस रंग के कारण कोई बैर नहीं तो फिर क्यों इंसान के साथ ऐसा किया जा रहा है?...जिस तरह हम काली मां के रूप को न देखकर उनके ममता से भरे दिल को देखते हैं और देवी के हर स्वरूप की अर्चना करते हैं उसी प्रकार नारी को भी उसके हर रूप में पूजना चाहिए, तभी आपके नवरात्रे सफल होंगे।